Anpadh Quotes In Hindi || Anpadh Status In Hindi || Anpadh Shayari In Hindi

Anpadh Quotes In Hindi || Anpadh Status In Hindi || Anpadh Shayari In Hindi



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एक पढ़े लिखे और अनपढ़ इंसान
में इतना सा फर्क होता है कि
पढ़ा लिखा इन्सान
वक़्त मजबूरी और हालात समझता है और
वही अनपढ़ के लिए ये कोई मायने नही रखते।



पढ़ लिखकर
डिग्रीयों के अम्बार लगा लेने वाले भी
किसी के जज्बातों को ना समझे तो
वो अनपढ़ ही हैं



वो कल मंदिर क्या आई
आज एक अनपढ़ पड़ित बन गया


इतना भी अनपढ़ नहीं हूँ 
खामोशी पढ़नी आती हैं।


जमाने भर की डिग्रीयां रखना
मगर दिल को अनपढ़ रखना
क्यों कि
पढ़े-लिखे को बातें समझ नही आती



हम दिल की बात लिखते हैं
और लोग उसे शायरी समझ लेते हैं 
एक वो हैं जो लिखा नहीं पढ़ सकते
एक हम हैं आँखों को पढ़ लेते हैं



मेरे शब्द को वो ही पढ़ सकते हैं
जो अनपढ़ हैं
आँख वालों ने तो पहले ही बहुत
 कुछ देख रखा हैं।


थूक कर वर्दी पर वह बस 
यही ऐलान करते है
कि उनके खून में ही मुल्क 
से गद्दारी शामिल है।




"अनपढ़ हाथ लिखना न जाने।
ये मेरा हाथ तो अनपढ़ था।
जरूर मेरे जज़्बातों 
से डरकर हाथ काँप गए होंगे"




"काश मैं अनपढ़ होता 
तेरा नाम 
पड़कर खुश तो ना होता"



"भावनाएं तो हैं अनपढ़ यहाँ
शब्द थे जो पंडित हो गए"



"नजरों के अनकहे दर्द को भला 
कौन पढ़ पाता है
आज हर कोई बस लिखा हुआ
 ही समझ पाता है"

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"हिंदी समझने के लिए
पढ़ालिखा होना ज़रूरी है साहब
अँग्रेजी के शब्दों का क्या है
उन्हें तो अनपढ़ भी समझ लेते हैं"

"ना अनपढ़ रहा
ना काबिल हुआ
ख़ामोखा ए-जिंदगी
तेरे स्कूल में दाखिल हुआ"



"बड़े लोगों की भूल को
अनुभव कहते है
और छोटे लोगों की भूल को
अनपढ़ कहा गया है"




"पढ़ीलिखी बहू किताबी ज्ञान 
लेकर आती है
और अनपढ़ बहू बाबाजी की घुट्टी
सबको पिलाकर नचाती है
अपने इशारों पर
किताबी ज्ञान धरा रह जाता है"


"तुझे पढ़ते पढ़ते तुझसे 
मोहब्बत हो गयी
तूने लिखे होंगे 
कुछ शब्द तूने लिखे होंगे 
कुछ शब्द तेरी चाहत में मैं 
खुद शायरी हो गयी"



"पढ़े लिखे गवाँर
और
अनपढ़ समझदार
के बीच
यह पूरा संसार"


"इसलिए इस मामले में 
रखा अनपढ़
या हमे पढ़ाना नही चाहते"



दिल था
कोई रफ़ कॉपी नहीं थी
तुम आये और 
घुचड़मुचड़ करके चले गये 
अनपढ़ कहीं के



"अनपढ़ वो नहीं है
जो पढ़ा-लिखा नहीं है
बल्कि अनपढ़ वो है
जो सिखना नहीं चाहता"



अक्सर चलता हूँ वालिदैन 
के बताये राह में
मैं अनपढ़ हूँ, मदर-फादर डे 
नहीं जानता हूँ।
वालिदैन- माँ-पिता



"अगर पढ़े लिखे भी अनपढ़ 
के सियाप्पे के 
ख़िलाफ़ बोलने से बचे
तोवो सियाप्पे में 
पढे-लिखे की 
हामी ही समझी जाती है।"


"कैसे मान लू तुम अनपढ़ हो यार
मैंने सुना है
तुम्हें फ़ोन उठाने 
के बाद इंग्लिश में हेलो बोलते हुए"




"खुद पता नही मुझ अनपढ़ को 
मै लिखा कहाँ से करता हु
मै प्यार की भाषा सुन-2 कर
कुछ शब्द संजोया करता हूँ।"



"मोहब्बत उनकी किसी रांझे 
से कम न होगी
उनकी आंखों में झांका तो 
ये "गुमान 'हो गया


"हमारी आँखों में
बहुत कुछ लिखा था उनके बारे में
मग़र वो थे अनपढ़
कभी कुछ पढ़ ही नहीं पाये"




"तुझे अपना कहूं या पराया
गर अनपढ़ समझ
ज़िन्दगी काट लेते है"




"अनपढ़ हूँ जनाब
ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूँ।
जो है मन में मुँह पर कहता हूँ
पीठ पर वार
 करना सीखा नहीं हूँ"




"भले डिग्रियां हो आपके 
पास लाख मगर
किसी के जज्बात न पढ़ पाये 
तो जनाब अनपढ़ हैं आप"


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"मुझे समझने वाला हर इंसान 
अनपढ़ निकला
ना जाने रब ने किस भाषा 
मे लिखा मुझे"



"नासमझ और अनपढ़ हूँ 
और गिनती 
तो मुझको बिल्कुल नहीं आती
इसीलिए आपकी तरह साहब
रिश्ते निभाने में मिन्टों का 
हिसाब नहीं रखती



हिंदी बोलता हूँ 
और अनपढ़ भी नहीं हूँ मैं
पर लगता है कभी कभी
शायद गवाँर हूँ



जिसे पढ़ना नही आता
एक हम हैं
जो हर शेर में तुम्हे ही
 लिखते रहते हैं



"मक़तब-ए-इश्क़ में हम दोनों 
ही अनपढ़ निकले 
न मैंने लिखना सीखा न तुम 
नज़रों को पढ़ सके"




"पढ़ी जाएँगी तेरी लिखी स्याही की
 इबारतें यक़ीनन
याद रखना ए दिल तेरी सिसकियाँ 
तन्हाई की अनपढ़ रहेंगी"



"वो जरा-सा पढ़-लिख क्या गए
 हमें गँवार बताने लगे
जरा-सा हवा में उड़े नहीं कि
खुद को घुड़सवार समझने लगे"



"भाषा मे
 थोड़ी तो सरलता लाईये
अनपढ़ भी तुम्हें पढ़ते हैं
थोड़ा तो रहम खाईये।"



"उस पढ़े लिखे को अभिमान था 
अपनी पढ़ाई में
एक अनपढ़ ने बिना देखे गीता का 
पूरा सार सुना दिया"



"खत न लिख तु ओ दिलरुबा
तेरा आशिक़ अंगूठा छाप है
तेरी आँखों के इशारे मयस्सर
तेरे जज़्बात वो लेता भाँप है"



"अनपढ़ वो नहीं है
जो पढ़ नहीं पाते।
अनपढ़ तो वो है
जो सीखना नहीं चाहते "




"लाख जमाने भर की डिग्रीयाँ
 हो हमारे पास
अपनों की आँखों का दर्द
 न पढ़ पाये
तो अनपढ़ है हम"



दिल था मेरा कोई रफ़ कागज़ नहीं
जो तुम आये और
घुसड़ मुसड़ करके चले गए।
अनपढ़ कहीं के




"लाख जमाने भर की डिग्रीयाँ 
हों तुम्हारे पास
अपनों की आखों से छलकते 
आँसू नहीं पढ़ पाओ तो
अनपढ़ हो तुम"



"इक बूंद जमीं पे बह रही
जो बादल बन कभी गरजी थी
वो वजूद धरा में खो रही
पर गिर जाना भी मर्जी थी
वो इश्क में अनपढ़ हो रही
जो प्यार में पनपी अर्जी थी
अब सब पढ़के भी रो रही
क्या बोली दिल की फर्जी थी"



अनपढ़ थी वो
पर सारी खामोशियाँ 
पढ़ गई मेरी



"न अनपढ़ रहे 
 न काबिल हुए 
खामखाँ ए ज़िन्दगी 
 तेरे स्कूल में दाखिल हुए"

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"होती होगी जमाने भर की 
डिग्री तुम्हारे पास
छलकते लफ़्ज़ों को न पढ़ पाए मेरे 
तो अनपढ़ हो तुम"




"जिस्म की तलब को लोग आज कल 
'अभि' 'मोहब्बत' कहते है
और हम आज भी अपनी 'रूहानी मोहब्बत'
 को ईबादत समझते है"



"असीमित संभावनाएं
और
अनेकों बेरोज़गार
के बीच
यह पूरा संसार"


"गाँव की है मेरी अनपढ़ मुहब्बत
उसको सेल्फ़ी लेनी तो आती है 
मुहँ बनाना नहीं आता"



"डिग्रियाँ लियो चाहें सैकड़ा
बनहूँ कलेक्टर होए।
इज्जत न कीजे माँ-बाप की
आपहुँ से बड़ा न अनपढ़ कोय"



"अनपढ़ों में नहीं देखे इतने
जाहिल थे पढ़े लिखे जितने
बातें करते हैं जितनी बड़ी
संकुचित मन से दिखे उतने"




"तू अनपढ़ है यह अच्छा 
है दोस्त
यहाँ किसी का मन पढ़ने 
जैसा नहीं है"



"जमाने भर की क़िताबें पढ़ी 
होगी तुमने
पर मेरे आंखों में छुपा दर्द 
ना पढ़ पाए
तो अनपढ़ हों तुम"



"अज़ीब हूँ
ना अनपढ़ रहा
ना  ही काबिल हुआ मैं
खामखाँ ए मोहब्बत तेरे 
स्कूल में दाख़िल हुआ मैं"



"हम अनपढ़ नहीं है साहब 
मुझे हिंदी में लिखना उतना ही
अच्छा लगता है 
जितना माँ के हाथ का खाना"



"दिल था
कोई रफ कॉपी नही थी
तुम आये और 
घुचड़मुचड़ करके चले गये
अनपढ़ कही के"


"उसूल बनाना चाहते थे कुछेक
वे दोनों प्यार के नये रिश्ते का
अच्छा हुआ बना नहीं पाए कुछ भी
आख़िर अनपढ़ जो थे प्यार में"


"ये पढ़ीलिखी जनरेशन 
समझ नहीं पाती है
वो आँखों की भाषा
जो हम अनपढ़ों को आती है"


"पढन लिखन आज तक किए नहीं
ले लेते लोगों की जान।
दिमाग में कचरा सवार है
 छोटी बात पे करे ये अभिमान"




"दुनिया की नज़रों में
 मैं अच्छा हो जाऊं
मैं ऐसा क्या करूँ 
की तेरा ही हो जाऊं"


"अब तो कौन किस का
 ऐतबार करता है
मैं क्या झूठ बोलूं कि 
मैं सच्चा हो जाऊं"


"दुनियादारी अब मुझे अच्छी 
नहीं लगती
मैं चाहता हूँ फिर से 
मैं बच्चा हो जाऊं"


"मैं सजायाफ्ता हूँ बेशक
मेरी गलती है
क्या गुनाह करूँ
जो बेगुनाह हो जाऊं"



ऐसा हो कि खुद से जो 
खुदको मिला दे
काश मैं वो वैसा कोई 
आईना हो जाऊं

हर अल्फ़ाज़ से तुम मुकम्मल 
किताब हो
मैं ऐसा क्या लिखूं 
जो ग़ज़ल हो जाऊं



ख़ामोश लबों को पढ़ नहीं 
पाया "राज" 
मैं ऐसा क्या पढूं की 
अनपढ़ हो जाऊं!




"तुम सीख जाओ बोलना भी मन की हर बात को
मैं हूँ निपट अनपढ़ मुझे पढ़ना तक नही आता"

दिखा दो अपनी आंखें खोलकर दिल के आईने को,
मुझे आँसुओं की जुबान का तज़ुर्मा भी नहीं आता!

जता दो पर्दे के पीछे की छिपी ख़्वाहिशों की मूरत,
मैं नही हूँ शिल्पी, मुझे पत्थर तराशना नहीं आता!

बहा लो मुझे भी अपने संग, जज्बातों के भंवर में,
मैं हूँ शांत समंदर, मुझे लहरें उठाना नही आता!

भर दो साँसे मेरी जिंदगी में, तेरी साँसों की तरह,,
मैं बसर करूँ तो कैसे, मुझे जीना तक नहीं आता!

जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, जंहा भी हूँ, तेरे सामने ही हूँ,
समेट लो मुझे बाँहों में, खुद को बिखेरना नहीं आता!

-


निरक्षर मछलियाँ...
नहीं सीखतीं किसी से— तैरना

अनपढ़ चिडियाँ...
नहीं पढ़ती— पाठ्य पुस्तकें
उडने के लिए

बारिश
गिर पड़ती है कहीं भी पटपटाकर
बिना अशिष्ट भाषा के

बूढ़े वनबाबा का
हर अक्षर
हरा अक्षर पेड़ बराबर...


प्रकृति...
नितांत अंगूठा-छाप है



पढ़ लिखकर तलो पकौड़े तुम
अनपढ़ सब संसद जाएंगे

सब चोर इकट्ठे होकर फिर
शिक्षित को पाठ पढ़ाएंगे

व्याकुल जनता पर टैक्स नए
ये सब्सिडी की खाएंगे

सौ करोड़ की रैली में
मंचों से ये गरियाएँगे

जनता चीथड़ों में घूम रही
ये सूट पहनकर आएंगे

कुर्सी की खातिर बांटेंगे
परिणाम में सत्ता पाएंगे

स्वतंत्र जिन्हें कुछ ज्ञान नहीं
वो देश में आग लगाएंगे..!

"गांव से हूं गंवार मत
 समझना
सुंदर नहीं हूं इतनी
पर दिल की बेकार
मत समझना"




"सारे बुरे ऐब बचता हूं घमंड से 
मैं बैठा गवार किसी अक्लमंद से।"

"इश्क में रहा और वफादार भी रहा
मै गवार था और गवार ही रहा"


"प्यार तो यार यहां सौदा हो गया
सच्चा प्यार जैसा शब्द खो गया"


"नजरो पर अक्ल का चश्मा भी लगवा लो
फिर अच्छे बुरे की पहचान खुद से करवा लो"



"कौन कहता है भला हम बेवफा है
वफा का अर्थ आप हमसे ही सीखे है"


"नजरो पर अक्ल का चश्मा भी लगवा लो
फिर अच्छे बुरे की पहचान खुद से करवा लो"


"कौन कहता है भला हम बेवफा है
वफा का अर्थ आप हमसे ही सीखे है"



"जमाने की गलती है हम
प्यार दिल से करते हैं
वो व्यापार दिल का करते हैं
हम समर्पित करते जान अपनी
वो एकबारगी उसका का संहार करते हैं"



"बदनामी से जो आप डरते है
तो क्या मोहब्बत ख़ाक करते है
रूह को जला कर जो शोलों पर चलते हैं
वही प्रेम का सही अर्थ समझते है"



"गलती उनकी न्ही है मेरे दोस्त
गलती मेरी है
अपनी औकात भुला कर दोस्ती कर बैठा
एक गाव का निवाशी"



"हिन्दी बोलता हूँ
इग्लिश सीखता हूँ
भूल जाना 
मैं अनपढ़ ग्वार हूँ"


"अपनी नाकामी छुपाते हो
झड गए हैं
 बाल तो WIG क्यों लगाते हो"


"खुद को कामयाब बताते हो
हर अतवार को 
दाढी बाल क्यों रंगवाते हो"


"उसनें दो चार बातें क्या कर ली प्यार सें
हम अनपढ़ गवार उसे प्यार समझ बैठें
वों दो चार कदम क्या चलीं हमारे साथ
और हम है के उन्हें हमसफ़र समझ बैठें"



'जिस्म के बदले जिस्म के 
मौके हज़ार
थे पर हम तो सिर्फ तुम्हारे
 तलबगार
थे वक़्त से पहले और किस्मत 
से ज्यादा
पाने की कोशिश की मैंने 
पढ़ लिखकर
भी हम कितने गवार थे।"


"मेरे गांव की मिट्टी
 से भरता है 
तेरे शहर का पेट
और तेरे शहर वाले 
गाँव वालों 
को गवार कहते हैं"


"देसी सूँ  गवार नी
माँई-बापू का लाल सूँ 
किसी पापा की परी का 
गुलाम नी
जय बाबा की"


"मोहब्बत में भी लोग अब 
तो बस कारोबार करते है
आप करते होंगें मोहब्बत मग़र 
वो तो बदनाम करते हैं"




"हमदर्द नहीं किसी कि
सबका सरदर्द हूँ मैं
जाहिल हूँ गँवार भी
पर खुदगर्ज़ नहीं हूँ मैं"


"माना कि सिखाया 
होगा तुमने 
किसी को अर्थ वफ़ा का।
मग़र मेरी मोहब्बत में 
तो तुमने थामा था
 दामन बेवफा का"


"कौन कहता है 
हम बदनामी
 से डरते हैं
हम तो सिर्फ बेवफा 
के इरादों से डरते हैं"


"आज किसी
 ने ऑटोग्राफ मांगा
सोचा मैं क्या ऑटोग्राफ दू
आज जो भी कुछ हूं मां 
के वजह से हूं
सोचा मां की तरह आज
अंगूठा लगा दू"




"जिस्म के तलबगार 
हो उफ्फ तुम
कितने बेकार हो
 मिट्टी पर मर रहे
हो, पढ़ लिखकर भी
 तुम कितने
गवार हो"


"शराब हो पुरानी
तो उसका नहीं कोइ
 जवाब हैं
और जिसने 
चौथी में आदा-पादा
 नहीं खेला
उसकी जिंदगी खराब है।"


"समुंदर के किनारों 
के बीच सिर्फ
 पानी का अंतर है
कोशिश तो करो पास 
आने की 
कहाँ ज्यादा अंतर है"


"तेरी बुराइयों 
को हर अख़बार
 कहता है
और तू मेरे गांव को गँवार
 कहता है"


"सलामत रहे वो
और उनका status
हम तो कल भी
 गवार थे
और आज भी"

"जो कहते थे
गाँव वालो को गवार
वक़्त बदला
आज उन्हें भी गाँव
याद आने लगा"


"चार अनपढ़ गवारो
 के पीछे
एक शिक्षित 
बेठा नजर आ रहा है"


"कितनी बार कहा तुमसे
ना देखो तुम कोइ आइना
जब तुम खुद से खूबसूरत हो"


"लगती हूं गबार सबको 
तो लगने देना
लोगों के लिए 
तो बेकार हुं पर तुम्हारा
 प्यार हूं मैं
बस यह याद रखना"


"उनका कहना भी 
गजब था
तुम गवार हो।
हमने भी 
कह दिया गवार जरूर हूँ
लेकिन अभी भी
अपने माँ-बाप
 का राजकुमार हूँ"


उसने कहा अंग्रेजी 
नही बोलते 
गवार लगते हो
मुस्कुराकर जवाब दे आया
"जी नही कलमकार हु
हिंदी में लिखने वाला 
कलाकार हु"


"बढ़ा बद्तमीझ हैं ये गवार दिल
कभी कभी नाही हर बार ऐक 
ही गलती करता हैं
करता हैं सबर उन के online आने का
और वो online आने 
पर उन से ही रुठा करता हैं"


"दिल की सुनी थी इसीलिए
 दिल हार बैठा
एक अनपढ़ गवार अमीर से
 प्यार कर बैठा
सोचा था जमाना बदल गया हे
पर नही अभी भी वो पुराना 
दौर चल रहा है।"



"एक रोग हो गया हैं इस दिल 
बीमार को
कि तरसता है अकसर तेरे 
दीदार को
तेरी आँखों की गहराई में डुबा 
था इस कदर
कि लोग शायर कहने लगे 
इस गवार को"


"मैं गवार हो सकता हूँ
असभ्य नही।
एक गवार में अपनी
पुरखा संस्कृति
धारण करने का
सामर्थ्य बल होता है"

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