उलझन तुझे क्या बताऊँ ऐ जिंदगी, तेरे गले लगकर तेरी ही शिकायत करनी है
उलझनों का क्या कहूँ, ऐ ज़िंदगी,
तेरे गले लगकर तेरी ही शिकायत करनी है।
जिंदगी, तेरी उलझनों को बयां कैसे करूँ,
तेरे ही आँचल में आकर तेरी शिकायत करनी है।
तुझसे उलझा हूँ, ऐ ज़िंदगी,
तेरे ही सीने में जाकर तेरी ही शिकायत करनी है।
जिंदगी, तेरे उलझनों के बारे में क्या कहूँ,
तेरे ही पास आकर तेरे खिलाफ शिकायत करनी है।
तेरी उलझनों में घुट रहा हूँ, ज़िंदगी,
तेरे गले लगकर तेरी ही शिकायत करनी है।
ज़िंदगी, तेरे उलझनों का जवाब कैसे दूँ,
तेरे ही पास जाकर तेरे ही दोष लगाना है।
उलझनों का दंश तुझे कैसे समझाऊँ,
तेरे ही क़रीब आकर तेरी शिकायत करनी है।
ज़िंदगी, तेरे जाल में फंसा हूँ,
तेरे ही गले लगकर तेरी ही शिकायत करनी है।
तेरी उलझनों में खोया हूँ, ऐ ज़िंदगी,
तेरे गले लगकर तेरे ही खिलाफ शिकायत करनी है।
जिंदगी की उलझनों की तस्वीर क्या बनाऊँ,
तेरे पास आकर तुझसे ही शिकवा करना है।