Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein

 Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein

Alone Shayari

Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein


कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही... ज़िक्र तुम्हारा होता।

Alone Shayari

Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein



उसे पाना उसे खोना... उसी के हिज्र में रोना
यही गर इश्क है तो... हम तन्हा ही अच्छे हैं।

Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein


Alone Shayari


Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein



मेरी आँखों में देख आकर... हसरतो के नक्श
ख्वाबो में भी तेरे मिलने की फ़रियाद करते है।

Alone Shayari


Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein

Kabhi Jab Gaur Se Dekhoge To Itna Jaan Jaoge
Ki Tumhare Bin Har Lamha Hamari Jaan Leta Hai

कभी जब गौर से देखोगे तो इतना जान जाओगे
कि तुम्हारे बिन हर लम्हा हमारी जान लेता है।

Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein


Alone Shayari


Alone Shayari || Tanhai Ki Raaton Mein

Kitni Ajeeb Hai Is Shahar Ki Tanhai Bhi
Hajaron Log Hain Magar Koi Us Jaisa Nahin Hai

कितनी अजीब है इस शहर की तन्हाई भी
हजारों लोग हैं मगर कोई उस जैसा नहीं है।

"एक चाहत होती है
जनाब अपनों के साथ जीने की
वरना पता तो हमें भी है कि
ऊपर अकेले ही जाना है"



सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
दुनिया की वही रौनक दिल की वही तन्हाई



तेरे जल्वों ने मुझे घेर लिया है ऐ दोस्त
अब तो तन्हाई के लम्हे भी हसीं लगते हैं



वक़्त तो दो ही कठिन गुजरे है सारी उम्र में
इक तेरे आने के पहले इक तेरे जाने के बाद।



बस इतना होश है मुझे रोज-ए-विदा-ए-दोस्त
वीराना था नजर में जहाँ तक नजर गयी


हुआ है तुझसे बिछड़ने के बाद ये मालूम
कि तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी


जिंदगी की राहों पर कभी यूँ भी होता है
जब इंसान खुद को पढ़ता है अकेले में


मेरी तन्हाई मार डालेगी दे दे कर तानें मुझको
एक बार आ जाओ इसे तुम खामोश कर दो


जमाना सो गया और मैं जगा रातभर तन्हा
तुम्हारे गम से दिल रोता रहा रातभर तन्हा


मेरे हमदम तेरे आने की आहट अब नहीं मिलती
मगर नस-नस में तू गूंजती रही रातभर तन्हा


नहीं आया था कयामत का पहर फिर ये हुआ
इंतजारों में ही मैं मरता रहा रातभर तन्हा


अपनी सूरत पे लगाता रहा मैं इश्तहारे-जख्म
जिसको पढ़के चांद जलता रहा रातभर तन्हा


अपनी तन्हाई से तंग आ कर
बहुत से आईने खरीद लाया हूँ


इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई
हम न सोए रात थक कर सो गई


जागने का अज़ाब सह-सह कर
अपने अंदर ही सो गया हूँ मैं


शहर की बे-चिराग गलियों में
ज़िन्दगी तुझ को ढूंढ़ती है अभी


ज़िन्दगी तन्हा है मेरी वीरान है
बस यह ही तो मेरी एक पहचान है


कितनी अजीब है इस शहर की तन्हाई भी
हजारों लोग हैं मगर कोई उस जैसा नहीं है


एक तेरे ना होने से बदल जाता है सब कुछ
कल धूप भी दीवार पे पूरी नहीं उतरी


दिल गया तो कोई आँखें भी ले जाता
फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ


कभी जब गौर से देखोगे तो इतना जान जाओगे
कि तुम्हारे बिन हर लम्हा हमारी जान लेता है


कोई रफ़ीक़ न रहबर न कोई रहगुज़र
उड़ा के लाई है किस शहर में हवा मुझको


ये भी शायद ज़िंदगी की इक अदा है दोस्तों
जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया


सहारा लेना ही पड़ता है मुझको दरिया का
मैं एक कतरा हूँ तनहा तो बह नहीं सकता


एक उम्र है जो तेरे बगैर गुजारनी है
और एक लम्हा भी तेरे बगैर गुजरता नहीं


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