मनुष्य का मन | Human Mind In Hindi
रूहानियत के नज़रिए से, हम सभी जीव का मन शरीर रुपी माया जाल में कैद है,
दुनिया में मौजूद हर मन वक्त और तत्व के प्रभाव के अंतर्गत, मौत की सीमा में है,
कुत्ते, बिल्ली, शेर, हिरन, हाथी,चूहा.. इन सभी प्राणी के शरीर के बजाए,
मन हम सभी एक है, हर मन दर्द का एहसास करने की शमता रखता है,
वह अहंकार जिसके चलते आज के समाज में मनुष्य यह मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं होता,
मनुष्य मन अनमोल है | हम मनुष्य मन का रूप है,
इस बात में कोई संदेह नहीं |
गौतम बुद्धा और महात्मा गांधी जी ने यह बात कही की
हम मनुष्य मन और सोच का रूप है,
जैसा हम सोचते है वैसे हम बन जाते है |
पर मन असलियत में क्या है यह बात कोई नहीं जानता |
मन के बारे में ना तो विज्ञान सम्पूर्ण रूप से बताता है,
और ना दर्शन-शंस्त्र उसका पूर्ण जिक्र करता है|
इसलिए मन की परिभाषाएँ कई हैं,
पर मन को जाने का सबसे बेहतर तरीका है,
खुद मन से यह सवाल करना, और भीतर का सफ़र तै करना
और यह पता लगाना की मन क्या हैं ?
अब क्युकी हम मनुष्य मन का रूप है,
इसलिए खुद से आप अगर यह सवाल करेंगे की मन क्या है,
तो जवाब ज़रूर मिलेगा |
खुद से सवाल करने में कल्पना शक्ति आपको इसका जवाब ज़रूर देगी |
क्युकी मेरे मुताबिक मन क्या है ?
“कल्पनाए हमारी वे है जो भ्रमांड में जितनी
दूर से दूर जा सकती थी,उतनी ही भीतर
से भीतर मन की पवित्रता की ओर|”
“संसार में “मन की दशा”
भलेही सभी अलग है,
मगर मन नहीं |
मेरे मुताबिक एक मनुष्य एक प्राणी है जिसका मन भी ओर जीवों के सामान ही हैं |
हम सिर्फ मनुष्य की बात क्यों करें, जबकि बाकी सभी जानवर भी हमारे तरह ही एक मन का रूप है |
रूहानियत के नज़रिए से, हम सभी जीव का मन शरीर रुपी माया जाल में कैद है,
और कर्मो के आधार पर शरीर की मौत की सीमा में जीता है |
दुनिया में मौजूद हर मन वक्त और तत्व के प्रभाव के अंतर्गत, मौत की सीमा में है,
जो अपने शरीर में दर्द का एहसास करने की शमता रखता है|
कुत्ते, बिल्ली, शेर, हिरन, हाथी,चूहा.. इन सभी प्राणी के शरीर के बजाए,
अगर आप सिर्फ मन की बात करे, तो किसी में कोई असमानता आपको नहीं मिलेगी|
ना दिखने वाले कीड़ों से लेकर मनुष्य तक सभी मन के रूप है |
मन हम सभी एक है, हर मन दर्द का एहसास करने की शमता रखता है,
पर क्युकी मनुष्य एक बुद्धि जीव- है जो खुद को इन्सभी से ऊपर समझता है,
इसलिए वह सिर्फ अहंकार है, जो मनुष्य को बाकी प्राणियों से अलग मनुष्य बनता है |
वह अहंकार जिसके चलते आज के समाज में मनुष्य यह मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं होता,
की एक मनुष्य मन, बाकी सभी मन के सामान है |
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